न्यूज़ डेस्क : जन सुराज पार्टी के नेता प्रशांत किशोर की 7 जनवरी की सुबह लगभग 4 बजे गिरफ्तारी से लेकर शाम 7 बजे जमानत पर रिहाई के बीच पटना पुलिस एक या दो बार नहीं बल्कि अपना काम सही से करने में तीन बार फेल साबित हुई। लगभग 15 घंटे पुलिस की हिरासत में रहे प्रशांत किशोर को कोर्ट ने निजी मुचलके पर रिहा कर दिया था जिसके बाद उन्होंने आरोप लगाया था कि कुछ पुलिस अफसर हीरोबाजी कर रहे हैं।
प्रशांत किशोर ने सवाल उठाया था कि बिना अदालत के आदेश के उन्हें बेऊर कैसे ले जाया गया और ऐसा करने वालों पर क्या कार्रवाई होगी। पुलिस की लापरवाही राजनीतिक रूप से तब संगीन हो जाती हैं, जब विपक्ष इसमें सरकार और प्रशांत किशोर के बीच अंदर के खेल का आरोप लगा रहा हो।
बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) की 70वीं संयुक्त प्रारंभिक परीक्षा दोबारा कराने को लेकर चल रहे आंदोलन के दौरान प्रशांत किशोर पर पटना पुलिस ने अब तक तीन मुकदमा दर्ज किया है। दो गिरफ्तारी से पहले और एक जमानत मिलने के बाद। प्रशांत किशोर पर पहले दो मुकदमे गांधी मैदान थाने में दर्ज हुए थे। एक 26 दिसंबर के मार्च को लेकर और दूसरा 2 जनवरी से गांधी मैदान में बिना इजाजत अनशन पर बैठने का।
पुलिस ने प्रशांत किशोर को कोर्ट में अनशन वाले केस में पेश किया लेकिन मार्च वाले केस में नहीं। ऐसा क्यों और कैसे हुआ, जबकि दोनों केस का थाना एक ही था, बड़ा सवाल है। आम तौर पर जब आरोपी कोर्ट में पेश किया जाता है तो उस पर दर्ज सारे केस की जानकारी अदालत को मिलती है। प्रशांत किशोर पटना पुलिस की आश्चर्यजनक लापरवाही के कारण एक गैर जमानती केस के रहते जमानती केस में बेल पर आराम से निकल गए। कोर्ट ने अनशन वाले केस में सारी धाराएं जमानती होने के बाद भी थाने से जमानत देने के बदले प्रशांत किशोर को कोर्ट लाने के लिए पटना पुलिस को फटकार भी लगाई थी।
26 दिसंबर के मार्च को लेकर दर्ज केस में प्रशांत किशोर पर लगी धाराओं में एक धारा भारतीय न्याय संहिता की धारा 132 है जो गैर जमानती है। अगर पुलिस प्रशांत किशोर को मार्च वाले केस में भी रिमांड करती तो उन्हें निजी मुचलके पर मिली जमानत मुश्किल हो जाती। कोर्ट बेल देता भी तो कुछ शर्तों के साथ देता, जिसे नहीं मानने की सूरत में प्रशांत को जेल जाना होता। अनशन वाले केस में प्रशांत को पता था कि धाराएं जमानती हैं और वो जब चाहें निकल सकते हैं।
पटना पुलिस ने जब प्रशांत किशोर को कोर्ट में पेश कर दिया तो बिना जज की इजाजत के प्रशांत को कहीं ले जाना कानूनन गलत था। कोर्ट के आदेश से पहले पुलिस पहले तो प्रशांत किशोर को लेकर बाहर खुले इलाके में आई और मीडिया को संबोधित करने का मौका दिया। जिसमें प्रशांत ने पुलिस के ऊपर लग रहे बदसलूकी के आरोपों को गलत बताया। उसके बाद पुलिस प्रशांत किशोर को लेकर बेऊर चली गई। पुलिस के पास कोर्ट का कोई आदेश था नहीं तो बेऊर जेल में कुछ हो नहीं सकता था। बाद में जब कोर्ट का आदेश पहुंचा तो बेऊर थाने से उन्हें निजी मुचचले पर छोड़ दिया गया।
पटना कोर्ट में बहस के दौरान सरकारी वकील की दलील थी कि पुलिस को बेल देने से दिक्कत नहीं है लेकिन प्रशांत किशोर पर फिर ऐसा ना करने की शर्त लगाई जाए। प्रशांत ने इसे मानने से मना कर दिया था। कोर्ट ने जब आदेश पारित किया तो इस बात पर गौर किया कि केस की सारी धाराएं जमानती हैं और उन्हें थाना से ही बेल दे देना चाहिए था। कोर्ट के आदेश में इसका जिक्र भी है और निची मुचलका पर छोड़ने का निर्देश। जन सुराज पार्टी ने दावा किया था- प्रशांत किशोर के सत्याग्रह के आगे झुकी व्यवस्था। कोर्ट ने दिया अनकंडीशनल बेल। जारी रहेगा अनशन।
कानून के जानकारों का कहना है कि कोर्ट ने कोई शर्त लगाई ही नहीं थी। सरकारी वकील के तर्क को कोर्ट का आदेश बताकर प्रशांत किशोर द्वारा उसे ठुकराने की बात सामने आई जिससे भ्रम की स्थिति पैदा हुई। अगर कोर्ट ने आदेश दे दिया होता तो फिर उस कोर्ट के जज के हाथ में फैसले को बदलने की ताकत नहीं होती। अगर कोर्ट ने शर्त लगाई होती तो उसे जिला जज या ऊपरी अदालत में चुनौती देनी होती। पटना कोर्ट ने एक ही आदेश दिया और उसमें कोई शर्त नहीं थी।
प्रशांत किशोर की गिरफ्तारी के बाद उन्हें लेकर अलग-अलग जगह जा रही पुलिस के हर मूवमेंट की खबर लोगों को समाचार चैनलों से मिल रही थी। जब पुलिस फतुआ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से उन्हें लेकर कोर्ट के लिए निकली तो ये खबर भी ब्रेकिंग न्यूज में चली। इसलिए कोर्ट में प्रशांत के समर्थक, शुभचिंतक और आस-पास के वो लोग जो उन्हें देखना चाहते थे, जमा हो गए। कोर्ट में इतनी ज्यादा भीड़ जमा हो गई कि जज, वकील और स्टाफ पुलिस के इंतजाम से हैरान थे।