न्यूज़ डेस्क : भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज कहा कि विश्व आश्चर्यचकित है कि 140 करोड़ लोगों वाले देश में तकनीक दूरस्थ कोनों तक पहुंच रही है. तकनीक के माध्यम से सेवा वितरण सुगम हुआ है. उन्होंने टिप्पणी की कि यहां के वरिष्ठ नागरिक जानते हैं कि पहले क्या स्थिति थी. बिजली के बिल के लिए लाइन में खड़े होना, किसी भी प्रशासनिक सेवा के लिए लाइन में खड़े होना, यह तक नहीं पता कि डिलीवरी टिकट या पासपोर्ट कैसे प्राप्त करें लेकिन आजकल यह सब मुट्ठी में आ गया है. यह बिल्कुल सहजता से हो रहा है. यह एक बड़ी क्रांति है.
मोतिहारी, बिहार में महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के दूसरे दीक्षांत समारोह में छात्रों को संबोधित करते हुए, इन्होंने कहा 2047 तक एक विकसित भारत सिर्फ एक सपना नहीं यह हमारा लक्ष्य है. हालांकि, इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हर किसी के महान बलिदान और योगदान की आवश्यकता होगी. विचार करें एक विकसित भारत के लिए, वर्तमान प्रति व्यक्ति आय को आठ गुना बढ़ाना होगा. लोग अक्सर मुझसे पूछते हैं, नागरिक इसके लिए क्या कर सकते हैं? यह वास्तव में एक महत्वपूर्ण प्रश्न है.
उपराष्ट्रपति ने बिहार में हुए परिवर्तन पर विचार करते हुए कहा, यह भूमि फिर से चमकने लगी है. नालंदा गायब हो गई थी, लेकिन अब नालंदा फिर से दिखाई दे रही है. मैं नालंदा गया था. अब यहां सृजन हो रहा है, विकास हो रहा है. कानून और व्यवस्था में एक नया आयाम जोड़ा गया है, यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है. यह एक महत्वपूर्ण सफलता है. इसलिए मेरा आपसे अनुरोध है, आप एक बड़ी छलांग ले सकते हैं.
एक सार्थक उदाहरण साझा करते हुए, उपराष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री की पहल का स्मरण करते हुए कहा कि जब मैं इस परिसर में आया, तो मुझे प्रधानमंत्री द्वारा दिया गया एक आह्वान याद आया - अपनी माँ के नाम एक पेड़. मैंने एक लगाया, उनके महामहिम ने भी. यह एक व्यक्तिगत कार्य है, लेकिन कल्पना कीजिए अगर 140 करोड़ लोग ऐसा करें. उन्होंने कहा, आप अपने बच्चे के नाम पर भी पेड़ लगा सकते हैं, यह कहते हुए, मैं इस पेड़ को तुम्हारी माँ के नाम लगाता हूँ, तुम बड़े होकर एक लगाना. यह कितनी बड़ी क्रांति ला सकता है.
उपराष्ट्रपति ने आयात पर निर्भरता कम करने के महत्व पर ज़ोर देते हुए कहा कि, जब हम उन वस्तुओं का आयात करते हैं जो पहले से ही हमारे देश में निर्मित हैं, तो इसके तीन बड़े नुकसान होते हैं. पहला, अनावश्यक विदेशी मुद्रा हमारे भंडार से बाहर निकल जाती है. दूसरा, हम विभिन्न वस्तुएं विदेश से आयात करते हैं - रंग, कमज़, फर्नीचर, पतंग, लैंप, मोमबत्तियाँ, परदे, और बहुत कुछ - नगण्य आर्थिक लाभ के लिए. लेकिन अगर इन्हें घरेलू स्तर पर निर्मित किया जाए, तो कल्पना कीजिए कितने लोगों को रोजगार मिलेगा. आयात करके, हम अपने ही लोगों के रोजगार को छीन रहे हैं. तीसरा, ऐसी प्रथाएँ घरेलू उद्यमियों की वृद्धि में बाधा डालती हैं. इसका सार यह है कि आज भी एक साधारण नागरिक इस मुद्दे को संबोधित करने के लिए बहुत कुछ कर सकता है.
पूर्व छात्रों और उनके संगठनों की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए श्री धनखड़ ने कहा विश्व के अग्रणी संस्थानों को देखें - उनकी ख्याति, छवि और वित्तीय स्थिरता पूर्व छात्र संघों द्वारा निर्धारित की जाती है. पूर्व छात्रों के संगठन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इस विश्वविद्यालय के हर छात्र को यह संकल्प लेना चाहिए कि वे विश्वविद्यालय कोष में योगदान करेंगे, चाहे वह वार्षिक हो या मासिक. यह महत्वपूर्ण नहीं है कि योगदान दस रुपये, सौ, हजार या दस हजार है. समय के साथ, यह बढ़ेगा, लेकिन आदत विकसित होनी चाहिए और यह आदत तभी बनेगी जब हम संकल्प लेंगे.
अपने संबोधन के समापन में उन्होंने छात्रों से नवीन रूप से सोचने और अवसरों की खोज करने का आह्वान किया, उन्होंने कहा की कार्यशालाओं के माध्यम से छात्रों को उपलब्ध असीमित संभावनाओं के बारे में बताएं. सरकारी नीतियाँ बहुत सहायक हैं, और धन तक पहुँच अधिक सरल हो गई है. जब भी आपके पास कोई विचार आता है, तो आपको हर कदम पर नीतियाँ मिलेंगी जो उस विचार को वास्तविकता में बदलने में सहायता करेंगी. आप अपने विचारों की सीमाओं से बाहर सोचें.
इस कार्यक्रम के मौके पर बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर, संसद सदस्य राधा मोहन सिंह, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति, डॉ. महेश शर्मा, प्रो. संजय श्रीवास्तव एवं अन्य उपस्थित थे.