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श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले में मुस्लिम पक्ष की याचिका हुई खारिज, इलाहाबाद हाई कोर्ट में हिंदुओं की बड़ी जीत // LIVE NEWS24

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न्यूज़ डेस्क : मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद मामले में हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज कर दी. गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाया. हाईकोर्ट ने कहा कि हिंदू पक्ष की ओर से दायर 18 याचिकाएं एक साथ सुनी जाएंगी. जस्टिस मयंक कुमार जैन की सिंगल बेंच ने यह फैसला सुनाया. हिंदू पक्ष की ओर से यह दावा करते हुए याचिकाएं डाली गईं थी कि शाही ईदगाह का ढाई एकड़ का एरिया मस्जिद नहीं है. वह भगवान कृष्ण का गर्भगृह है.

वहीं, मुस्लिम पक्ष ने दलील दी थी कि 1968 में हुए समझौते के तहत मस्जिद के लिए जगह दी गई थी. 60 साल बाद समझौते को गलत बताना ठीक नहीं. हिंदू पक्ष की याचिकाएं सुनवाई लायक नहीं है. हालांकि, हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद मुस्लिम पक्ष की इस दलील को स्वीकार नहीं किया. अब हिंदू पक्ष की 18 याचिकाओं की एक साथ सुनवाई होगी. ज्यादातर याचिकाओं का नेचर यानी प्रकृति एक जैसी ही है.

एडवोकेट कमीशन सर्वे के लिए हिंदू पक्ष सुप्रीम कोर्ट जाएगा
हिंदू पक्ष के वकील विष्णु जैन ने कहा- 25 सितंबर 2020 को पहला याचिका दायर हुई थी. 4 महीने सुनवाई हुई. आज हाईकोर्ट ने 18 याचिकाओं को सुनवाई योग्य माना. अब इस केस में ट्रायल चलेगा. हम लोगों को मौका मिलेगा कि हम सबूत पेश करेंगे. एडवोकेट कमीशन सर्वे के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा रखी है. बहुत जल्द हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे. स्टे बहाल करने और श्रीकृष्ण जन्मभूमि में ईदगाह की एडवोकेट कमीशन सर्वे की मांग करेंगे.

हिंदू पक्ष बोला- नियमों के खिलाफ शाही ईदगाह कमेटी को जमीन दी गई
हिंदू पक्ष की तरफ से दाखिल 18 याचिकाओं को शाही ईदगाह कमेटी के वकीलों ने हाईकोर्ट में ऑर्डर 7, रूल 11 के तहत चुनौती दी. शाही ईदगाह कमेटी के वकीलों ने बहस के दौरान कहा- मथुरा कोर्ट में दाखिल याचिका सुनवाई योग्य नहीं है. मामला पूजा स्थल अधिनियम 1991 और वक्फ एक्ट के साथ लिमिटेशन एक्ट से बाधित है. इसलिए इस मामले में कोई भी याचिका न तो दाखिल की जा सकती है और न ही उसे सुना जा सकता है.
हिंदू पक्ष की तरफ से कहा गया- इस मामले पर न तो पूजा स्थल अधिनियम का कानून और न ही वक्फ बोर्ड कानून लागू होता है. शाही ईदगाह परिसर जिस जगह मौजूद है वह श्रीकृष्ण जन्मभूमि की जमीन है. समझौते के तहत मंदिर की जमीन को शाही ईदगाह कमेटी को दी गई है, जो नियमों के खिलाफ है.